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भाववा]
[ ३७३ भजा य पुत्तो वि य नायओ वा, दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ॥१०॥
[उत्त० अ० १३, गा० २५ ] जीव-रहित इस तुच्छ शरीर को चिता मे रख कर अग्नि के द्वारा जलाया जाता है। फिर उसकी भार्या, पुत्र तथा ज्ञातिजन अन्य दातार के पीछे चल पडते है। न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ,
नमित्तवग्गा नसुया न वन्धवा । एक्को सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं,
कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥११॥
[उत्त० अ० १३, गा० २३ ] उसके दुःख का ज्ञातिजन विभाग नही कर सकते तथा न मित्रवर्ग, न पुत्र और न ही भ्राता आदि कुछ कर सकते है, किन्तु वह अकेला स्वयमेव उस दुःख का अनुभव करता है, क्योकि कर्ता के पीछे ही कर्म जाता है।
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं तवं चरे ॥१२॥
[ उत्त० अ० १८, गा० १५] हे राजन् ! पुत्रो परम दुखी होकर मरे हुए पिता को घर से बाहर निकाल देते है, इसी प्रकार मरे हुए पुत्र को पिता तथा भाई को भाई निकाल देता है। अतः तू तप का आचरण कर।