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________________ धारा : २३: सम्यक्त्व निस्सग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्तबीअरुइमव । अभिगम-वित्थाररुई, किरिया-संखेव-धम्मरुई ॥१॥ [उत्त० अ० २८, गा० १९] (१) किसी को स्वाभाविक रूप से ही तत्त्व के प्रति रुचि होने से, (२) किसी को उपदेश श्रवण करने से, (३) किसी को भगवान् की ऐसी आज्ञा है ऐसा ज्ञात होने से, (४) किसी को सूत्र सुनने से, (५) किसी को एक शब्द सुनकर उसका विस्तार करनेवाली बुद्धि से, (६) किसी को विशिष्ट ज्ञान होने से, (७) किसी को विस्तार पूर्वक अर्थ श्रवण करने से, (८) किसी को सक्रियाओं के प्रति रुचि होने से, (९) किसी को सक्षेप मे रहस्य ज्ञात हो जाने से तो (१०) किसी को धर्म के प्रति अभिरुचि होने से, यो दस प्रकार से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। विवेचन-सम्यक्त्व का सामान्य परिचय आठवी धारा में दिया है। यहां उसका विशेष परिचय दिया गया है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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