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________________ धारा :३०: बाल और पंडित एएसु वाले य पकुबमाणे, आवट्टई कम्मसु पावएसु ॥१॥ सू० श्रु० १, म १०, गा०५] पृथ्वीकाय आदि जीवो के साथ दुर्व्यवहार करता हुआ बाल जीव पापकर्मों से लिप्त होता है ।। विवेचन- जो आत्मा सत् और असत् के विवेक से रहित हैं, . अज्ञानी हैं, उनके लिये यहाँ बाल शब्द का प्रयोग हुआ है। रागदोसस्सिया बाला, पावं कुवंति ते बहुं ॥२॥ [सू० ५० १, म०८, गा०८] बाल जीव राग-द्वष के अधीन होकर बहुत पाप करते है। जावन्तविजा पुरिसा, सवे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए ॥३॥ [उत्त० भ० ६, गा०१] जो अविद्यापुरुष है, वे सर्व प्रकार के दुखो को भोगनेवाले है। वे मूर्ख इस अनन्त संसार मे अनेक बार पीडित होते हैं। विवेचन-अविद्या अर्थात् मिथ्यात्व अथवा ज्ञानहीन-अवस्था ।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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