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________________ कपाय ] [ ३३६ प्रश्न - हे भगवन् ! मान का मर्दन करने से जीव क्या उपार्जन करता है ? उत्तर - हे शिष्य ! मान का मर्दन करने से जीव मार्दव (मृदुता ) को प्राप्त करता है । ऐसा मार्दवयुक्त जीव मानवेदनीय मानजन्य कर्मो का बन्ध नही करता और पूर्वबद्ध कर्मो की निर्जरा कर देता है । मायाविजऐणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ १ जणयह, मायाविजएणं अजवं मायावेयणिज कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ ॥ १६ ॥ [ उत्त० २६, गा०६६ ] प्रश्न - - हे भगवन् ! माया को जीतने से जीव क्या उपार्जन करता है ? उत्तर - हे शिष्य ! माया को जीतने से जीव आर्जव ( सरलता ) गुण उपार्जन करता है । ऐसा आर्जवयुक्त जीव मायावेदनीय-मायाजन्य कर्मों का बन्ध नही करता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा कर देता है । लोभविजएणं भन्ते ! लोभविजएणं संतोसं जणय, लोभवेयणियज्जं कम्मं जीवे किं जणयइ १ न बंधइ, पुन्ववद्धं च निज्जरेइ ॥ १७॥ [ उ० भ०२६, गा० ७० ]
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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