SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाद] [३१६ से सोयवले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२०॥ [उत्त० अ० १०, गा० २१] तेरा शरीर जीर्ण होता जा रहा है, तेरे केश सफेद होते जा रहे है और तेरा सारा बल भी घट रहा है। इसलिये हे गौतम ! तू समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। अरई गण्डं विसूइया, आयंका विविहा फुसन्ति ते । विहडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम मा पमायए ॥२१॥ [उत्त० अ० १०, गा० २७ ] अरुचि, फोड़े-फुन्सी, अजीर्ण, दस्त आदि विविध रोग तुझे घेरने लगे हैं। तेरा शरीर दिन ब दिन दुर्बल हो रहा है और विनाश की अन्तिम सीढी पर आ पहुंचा है। अतः हे गौतम ! तू समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। वोच्छिन्द सिणहमप्पणो, कुमुय सारइयं व पाणियं । से सम्बमिणहवजिए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२२॥ [ उत्त० अ० १०, गा०२८]
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy