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प्रमाद]
[३.. इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि,
इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । त एवमेवं लालप्पमाणं,
हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥२॥
[उत्त० अ० १४, गा० १५] 'यह मेरा है,' 'यह मेरा नहीं है, 'यह मैने किया है', 'यह मैने नही किया ,' इस प्रकार सलाप करते हुए पुरुष का आयुष्य रात्रि और दिवसरूपी लुटेरे लूटा करते है, वहाँ प्रमाद कैसे किया जाय ? असंखयं जीविय मा पमायए, '
जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं विजाणाहि जणे पमत्त, किण्णु विहिंसा अजया गहिन्ति ? ॥३॥
[उत्त० भ० ४, गा० १] जोवन टूट जाने के बाद जुडता नही और जरावस्था के आ 'पहुंचने पर उससे बचकर नही रहा जा सकता। जो प्रमत्त है, अनेक प्रकार की हिसा करनेवाले हैं और सयम-विहीन है, वे भला अन्त समय मे किसकी शरण मे जाएंगे ? जे पावकम्भेहि धणं मणुस्सा,
समाययन्ती असई गहाय ।