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काम-भोग]
[ २६६ तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पई।। पभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो ॥१५॥
[उत्त० अ० ५, गा० ११ ] फिर भयानक रोगो से पीड़ित होकर अनेकविध दुःखो को भोगता है। तथा परलोक से बहुत ही डरकर-भयभीत बन अपने दुष्कर्मो के लिये निरतर पश्चात्ताप करता है।
सल्लंकामा विसं कामा, कामा आसीविसोपमा । कामे य पत्थेमाणा, अकामा जन्ति दोग्गई ॥१६॥
[उत्त० अ० ६, गा० ५३ ] कामभोग शल्यरूप है, कामभोग विष के समान है और कामभोग भयङ्कर सर्प जैसे है । जो कामभोगो की इच्छा करता है, वह उसे प्राप्त किये बिना ही दुर्गति में जाता है। खणसेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा,
पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया,
खाणी अणस्थाण उ कामभोगा ॥१७॥
[उत्त० अ० १४, गा० १३ ] कामभोग क्षणमात्र सुख देनेवाले है और दीर्घकाल तक दुःख देनेवाले है। कामभोगो के लिये उपयुक्त सामग्री उपलव्य करने के लिये बहुत हो कर उठाना पड़ता है. जबकि सुख तो नाममात्र का हो