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[श्री महावीर-वचनामृत मिलता है। फिर ससार से छूटने के लिये जो उपाय हैं, उनके ये प्रतिपक्षी हैं-पक्के विरोधी हैं और अनर्थ की खान हैं।
जहा किंपागफलाण, परिणामो न सुंदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो ॥१८॥
[उत्त० म० १६, गा० १७ ] जैसे किंपाक फल खाने का परिणाम अच्छा नही होता, वैसे ही 'परिभुक्त भोगो का परिणाम भी अच्छा नहीं होता।
विवेचन--किपाक फल दीखने में सुन्दर और स्वाद मे मीठा होता है, किन्तु उसके खाते ही जहर चढने लगता है और शीघ्र ही प्राण निकल जाते हैं। नहा य किंपागफला मणोरमा,
रसेण वण्णेण य भुञ्जमाणा । ते खुड्डए जीविय पञ्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥१६॥
[उत्त० म० ३२,गा०२०] जिस तरह किंपाक फल स्वादु और वर्ग से मनोहर होते हैं, किन्तु उसके खाते ही प्राण का विनाश हो जाता है, ठीक ऐसा ही कामभोग का विपाक समझना चाहिये। तात्पर्य यह है कि कामभोग प्रथम क्षण मे मनोहर लगते हैं, किन्तु भोगने के पश्चात् अत्यन्त दुःखप्रद सिद्ध होते है।