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काम-भोग]
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जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई।। न मे दिट्टे परे लोए, चक्खु दिट्ठा इमा रई ॥६॥
[उ० अ०५, गा०५] जो कोई जीव काम-भोग मे आसक्त होता है, वह नरक मे जाता है। वह ऐसा विचार करता है कि मैने परलोक तो देखा नही, और यहाँ का सुख तो मुझे प्रत्यक्ष दीखता है।
हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो ॥१०॥ जणेण सद्धि होक्खामि, इइ बाले पगब्भई । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ॥ ११ ॥
[उ० भ० ५, गा०६-७] ये काम-भोग तो हाथ मे आये हुए है, जबकि भविष्य मे मिलने-वाला सुख तो परोक्ष है । और भला कौन जानता है कि परलोक का अस्तित्व है या नही ?
'जो स्थिति दूसरों की होगी, वही मेरी भी होगी।' ऐसा अज्ञानी जीव बोलता है। परन्तु वह काम-भोग के अनुराग से क्लेश 'पाता है।
तओ से दंडं समारभई, तसेसु थावरेसु य । अट्टाए य अणहाए, भूयगामं विहिंसई ॥ १२ ॥
[उ० भ० ५, गा०८]]