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[श्री महावीर-वचनामृत लिप्त नहीं होता। भोगी संसार में परिभ्रमण करता है और अभोगी संसार से मुक्त हो जाता है।
उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुडे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई॥६॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्कगोलए ॥७॥
[उ० अ० २५, गा० ४२-४३ ]
गीला और सूखा ऐसे मिट्टी के दो गोलो को यदि हम किसी दीवार पर फेंके तो उनमे से जो गीला होता है वह दीवार पर चिपक जाता है और सूखा चिपकता नही। ठीक उसी तरह जो मनुष्य काम-भोग मे आसक्त है और दुष्ट बुद्धिवाला है, वह सासारिक बन्वनो में फंस जाता है और जो कामभोग से विरक्त है, वह सासारिक बन्वनों मे फंसता नही।
गिद्धोवमा उ नच्चाणं, कामे संसारवड़णे । उरगो सुवण्णपासे ब, संकमाणो तणु चरे ॥ ८॥
__ [ उ० अ० १४, गा० ४७] गीघ पक्षी की उपमावाले और संसार को बढानेवाले इन कामभोगों को जानकर जैसे साँप गरुड़ के समीप शकाशील होकर चलता है, उसी प्रकार तू भी संयममार्ग मे यल से चल ।