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दुशील]
[२६१ __ कणकुण्डगं चइत्ता णं, विटुं भुंजइ सूयरे । एवं सीलं चइत्ता णं, दुस्सीलं रमई मिए ॥३॥
[उत्त० अ० १, गा०५] जैसे सूअर अनाज को तजकर विष्ठा 'खाता है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य सदाचार का त्याग कर दुराचार मे प्रवृत्त होता है।
सुणिया भावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य । विणए ठविज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो ॥४॥
[उत्त० अ० १, गा०६] कुतिया और सूअर के साथ अविनयी मनुष्य की तुलना होती देखकर निजहित चाहनेवाला व्यक्ति अपनी आत्मा को विनय और सदाचार मे प्रस्थापित करे।
जविणो मिगा जहा संता, परिताणण वज्जिया। असंकियाई संकंति, संकिआई असंकिणो ॥५॥ परियाणियाणि संकेता, पासियाणि असंकिणो। अन्नाणभयसंचिग्गा, संपलिंति तहिं तहिं ॥६॥ अह तं पवेज्ज वझं, अहे वज्झस्स वा वए। मुच्चेज्ज पयपासाओ, तं तु मंदेण देहए ॥७॥ अहिअप्पाऽहियप्पन्नाणे, विसमतेणवागए। स बद्धे पयपासेणं, तत्थ घायं नियच्छइ ॥८॥
[सू० श्रु० १, ०१, उ० २, गा० ६ से०६]