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________________ सयम की आराधना] [२६१ जो पांच महाव्रतो से हिंसादि आस्रव के रोधक है, जो ऐहिक जीवन की आकाक्षा नहीं करते, जो काया की ममता छोड चुके है, और जो देह की सार-सवार वृत्ति से पर है, वे ही महाविजय के लिए श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं। कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ अ दारुणो । दुक्खं वंभवयं घोरं, धारेउं य महप्पणा ॥१०॥ [उत्त० अ० १९, गा० ३४] ___ मुनि जीवन कापोतवृत्ति के समान है , केशलोच अत्यन्त दारुण है और उन ब्रह्मचर्य व्रत का धारण करना कठिन है; परन्तु महात्माओं को वे गुण धारण करने चाहिये। . विवेचन कापोतवृत्ति का अर्थ है कबूतर के समान जो मिले उस पर जीवन चलाना। बालुयाकवले चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुकरं चरित्रं तवो ॥११॥ ___ [उत्त० अ० १६, गा० ३८] सयम रेती के कौर की तरह नीरस है और तपश्चर्या तलवार की धार पर चलने की तरह दुष्कर है। जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करं । तहा दुकरं करेउं जे, तारुण्णे समणत्तणं ।।१२।। [ उत्त० भ० १९, गा० ३६]
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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