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[श्री महावीर-वचनास्त पडिसोअमेव अप्पा, .
दायचो होउ कामेणं ॥७॥
[दश० चू० २, गा० २] जगत मे बहुत से लोग अनुस्रोतगामी अर्थात् विषय के प्रवाह में वहनेवाले होते हैं। किन्तु जिसका लक्ष्य किनारे पहुंचने का है वह प्रतिलोतगामी अर्थात विषय-प्रवाह के सामने जानेवाला होता है। जो ससारसागर को पार करना चाहता है उसे अपनी आत्मा को निःसन्देह प्रतिस्रोत मे-विषय-पराङ्मुखता मे ही स्थिर करनी चाहिए। अणुसोअसुहो लोओ, पडिसोओ आसवो सुविहिआणं । अणुसोओ संसारो, पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥८॥
[दश० चूः २, गा०३ ] सामान्य मनुष्य विषय के प्रवाह मे बहनेवाले तथा उसीमें सुख माननेवाले होते हैं, जबकि साघु पुरुषों का उद्देश्य तो प्रतिस्रोत ही होता है। इतना समझ लो कि अनुलोत यह ससार है और प्रतिस्रोत उससे बाहर निकलने का उपाय है। सुसंवुडा पंचहिं संवरेहिं,
___इह जीवियं अणवकंखमाणा । वोस?काया सुइचत्तदेहा,
महाजयं जयइ जन्नसिहं ॥३॥
[उत्तः भ० १२, गाः ४२