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[श्री महावीर-वचनामृत तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥३४॥
[दश० भ० ५, उ० १, गा० ४२-४३] वालक अथवा वालिका को स्तनपान कराती हुई स्त्री यदि उसे रोता हुआ छोड कर आहार-पानी देवे तो वह साधु के लिये अकल्पनीय है। अतः देनेवाली महिला को साधु इस तरह निषेध व्यक्त करे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिये कल्लनीय नही है।
असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, दाणट्ठा पगडं इमं ॥३॥ तारिसं भत्तपाणं तु, संजयाणं अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥३६॥
[दश० अ० ५, उ० १, गा० ४७-४८ ] जो साधु ऐसा जान ले अथवा कही से सुन ले कि यह अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुएं साधु को दान देने के लिये ही तैयार करवाई गई हैं, तो उसके लिये वह आहार-पानी अकल्पनीय हो जाता है, अतः उस दाता से साधु को कहना चाहिये कि इस तरह का आहार-पानी मेरे लिये कल्पनीय नही है।
विवेचन-आहार के चार प्रकार है:-(१) अशन, (२) पान, (३) खादिम और (४) स्वादिम। इन मे क्षुधा का शमन करे ऐसे पदार्य जैसे कि भात, कठोल, रोटी, मोटो रोटी, पूड़ी, बडे, मांड, सत्तू आदि अमन कहलाते हैं। पीने योग्य पदार्य जैसे कि चावल का