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________________ [२०३ अष्ट-प्रवचननाता] उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उबहिं देहं, अन्नं वावि तहाविहं ॥२०॥ [ उत्त० भ० २४, गा० १५] मल, मूत्र, कफ, नाक का मल, शरीर का मैल, आहार, उपधि, देह, (गव तथा ऐसी अन्य वस्तुओं को विधिपूर्वक परिठवनी-ठिकाने लगानी) चाहिये। विवेचन-उच्चार-प्रस्रवण-समिति को परिष्ठापनिका-समिति भी कहते हैं। वेकार वस्तुओ का सावधानीपूर्वक परिष्ठापन करने से-ठिकाने लगाने से इस समिति का पालन होता है। मल, मूत्र, कफ, नासिका का मल, शरीर का मैल परठवने ( ठिकाने लगाने ) का प्रसग प्रतिदिन आता है, जबकि आहार परठवने ( ठिकाने लगाने ) का प्रसग तो कचित ही आता है। उपधि को परठवने (ठिकाने लगाने ) का प्रसग वर्षाकाल से पूर्व आता है और शव को परठवने ( ठिकाने लगाने ) के प्रसग कभी-कभी आते हैं। ये सभी वस्तुएं कहाँ रखनी चाहिये ? इसकी सूचना अगली गाथाओ मे दी गई है। अणावायमसंलोए, अणवाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥२१॥ अणावायमसंलोए, परस्सऽणुवधाइये । समे अज्झुसिरे वावि, अचिरकालकयंमि य ॥२२॥ विच्छिन्ने दूरमोगाढे, नासन्ने विलवज्जिए । तयपाण बीयरहिए, उच्चाराइणि चोसिरे ॥२३॥ [उत्त० भ० २४, गा० १६-१७-१८]
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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