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[श्री महावीर वचनामृत
(१) जहाँ किसीके आने की सम्भावना न हो और कोई देखता भी न हो, (२) जहाँ किसोके आने की सम्भावना न हो किन्तु कोई देखता हो, (३) जहाँ कोई आता हो किन्तु देखने की सम्भावना न हो और (४) जहाँ कोई आता भी हो और देखता भी हो, ऐसे चार स्थानों मे से जहाँ कोई आता भी नही हो और कोई देखता भी नही। हो, ठीक वैसे ही जहाँ जीवो का घात होने की सम्भावना न हो, जो स्थान सम हो, छिद्रवाला न हो, और थोड़े समय से अचित्त बना हुआ हो, जो स्थान विस्तृत हो, नीचे दीर्घकाल तक अचित्त हो, जो ग्रामादि के समीप न हो और चूहे आदि के बिल से रहित तथा कीटकादि। प्राणी और वीज से रहित हो, ऐसे स्थान पर साधु को मलादि का त्याग करना चाहिये।
एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया। इत्तो य तओ गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुचसो ॥२४॥
[उत्त० अ० २४, गा० १६] ऊपर पाँच समितियों को मैने संक्षेप मे बताया है। अब तीन गुप्तियों को अनुक्रम से कहता हूं।
सच्चा तहेव मोसा य, सच्चमोसा तहेब य । चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्ती चउन्चिहा ॥२॥
. [उत्त० भ० २४, गा० २०] मनोगुप्ति चार प्रकार की है :-(१) सत्या, (२) असत्या, (३) मिश्रा और (४) असत्यामृषा ।