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'भप्ट प्रवचनमाता]
[२१७ आलंवगण कालेण, मग्गेण जयणाइ य। चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥४॥
साधुपुरुष को आलम्बन, काल, मार्ग और यतनादि चार कारणो __ की शुद्धिपूर्वक ईर्यासमिति का पालन करना चाहिये।
विवेचन-ईर्यासमिति का वास्तविक अर्थ है चलते समय कोई ‘भी जीव न मरे, इसकी पूरी सावधानी रखना।
तत्थ आलंवणं नाणं, दंसणं चरणं तहा। काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥
उसमें आलम्बन से ज्ञान, दर्शन और चारित्र को निर्दिष्ट किया गया है, जबकि काल से दिन और मार्ग से उत्पथ का परिवर्जन ।
विवेचन-आलम्बन की शुद्धिपूर्वक चलना अर्थात् ज्ञान-दर्शन'चारित्र की रक्षा अयवा वृत्ति का हेतु हो तभी साधुपुरुष को चलना चाहिये, अन्यथा नही। काल की शुद्धिपूर्वक चलना अर्थात् दिन मे ही चलना चाहिये, रात्रि में नहीं। मार्ग की शुद्धिपूर्वक चलना ‘अर्यात सभी के लिए निश्चित आवागमनवाले मार्ग मे ही चलना, किन्तु टेढ़े-मेढे मार्ग पर नही चलना। टेढे-मेढ़े उबड़-खाबड मार्गपर "चलने से जीवाकुल भूमि पर पैर गिरने की सम्भावना रहती है, जिससे बहुत जीवों की विरावना होना सम्भव है।
दबओ खेतओ चेव, कालो भावओ तहा। जयणा चउविहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥६॥