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________________ २१६ ] [ श्री महावीर वचनामृत (५) उच्चारप्रस्रवण समिति । तीन गुप्तियाँ ये हैं - (१) मनोगुप्ति, (३) वचनगुप्ति और (३) कायगुप्ति । कायगुप्ति आठवी है अतः इसके साथ अष्ट प्रवचनमाता की गणना पूरी होती है | एयाओ अट्ठ समिईओ, समासेण वियाहिया | दुवालसंगं जिणक्खायं, मायं जत्थ उ पवयणं ॥३॥ ये आठ समितियाँ सक्षेप मे कही गई है । प्रवचन अर्थात् जिन भगवन्तों द्वारा कथित द्वादशाङ्गी । वह इन आठ समितियों मे अन्तर्भूत है, इसीलिये इन्हे अष्ट-प्रवचनमाता कहा जाता हैं । विवेचन - जबकि ऊपर पांच समिति और तीन गुप्ति कहा गया है तो भला यहाँ आठ समिति कैसे हो गई ? ऐसा प्रश्न मन मे उठना सम्भव है | इसका समाधान यह है कि गुप्ति भी अपेक्षाविशेष से एक प्रकार की समिति है और यह निर्दिष्ट करने के लिये ही यहाँ 'आठ समिति' ऐसा कहा गया है । देवाधिदेव श्री जिनेश्वर भगवान् ने जो उपदेश दिया, उसे गणधर भगवन्तों ने आचारादि वारह अङ्गों मे ग्रथित किया । उसको ही निर्ग्रन्थ- प्रवचन अथवा प्रवचन कहा जाता है । इस प्रवचन मे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनो का वर्णन है, तथापि उसमे मोक्षप्राप्ति के अनन्तर कारणरूप सम्यक् चारित्र की ही प्रधानता है, जिसे अन्य शब्दों मे निर्वाणप्रापक योग-सावना भी कहते हैं । इस योगसाधना को माता के समान रक्षण करनेवाली और इसका पालन-पोषण करनेवाली ये आठ समितियाँ हैं । इसलिये इनका 'अष्ट प्रवचनमाता' ऐसा रहस्यमय नाम दिया गया है ।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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