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________________ धारा : १८: अष्ट-प्रवचनमाता अट्ठ पत्रयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचेच य समिईओ, तओ गुत्तोओ आहिया ॥१॥ प्रवचनमाता के आठ प्रकार है। वह समिति और गुप्तिरूप है। उसमे पांच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ कही गई है। विवेचन-साधु, मुनि, अथवा योगी के जीवन मे अष्ट-प्रवचनमाता अति आवश्यक अङ्ग की पूर्ति करती है। इन आठ प्रकार की प्रवचनमाताओ का एक भाग समिति और दूसरा भाग गुप्ति कहलाता है। समिति का सीधा अर्थ है सगति अथवा सम्यक प्रवृति और गुप्ति का अर्थ है प्रशस्त प्रवृत्ति सहित अप्रशस्त प्रवृत्ति का निग्रह । परन्तु गहराई से देखे तो समिति मे साधु, मुनि, अथवा योगी के जीवन की समस्त जीवनचर्या का समावेश है, जबकि गुप्ति मैं उसके पालन योग्य साधनो का समावेश है। इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ॥२॥ पाँच समितियां इस प्रकार है :-(१) ईर्यासमिति, (२) भाषासमिति, (३) एपणासमिति, (४) आदान-निक्षेप समिति और
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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