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________________ २०.] [श्री महावीर-वचनामृत गंभीरविजया एए, पाणा दुप्पडिलेहगा। आसंदीपलिअको य, एयमह विवजिया ॥२३॥ [दश० अ० ६, गा०५५] । कुर्सी, पलड्न आदि मे गहरे छिद्र होने से प्राणियो की प्रतिलेखना होना कठिन है। इसलिये मुनियों को उसपर बैठना छोड देना चाहिये। गोअरग्गपविठस्स, निसिज्जा जस्स कप्पइ । ... इमेरिसमणायारं, आवज्जइ --अवोहि ॥२४॥ विवत्ती वंभचेरस्स, पाणाणं च बहे वहो । वणीमगपडिग्याओ, पडिकोहो अगारिणं ॥२५॥ - अगुत्ती वभचेरस्स, इत्थीओ वाचि संकणं । कुसीलवडणं ठाण, दूरओ परिवज्जए ॥२६॥ [दश० अ०६, गा० ५६-५७-५८] गोचरी ( मधुकरी ) के निमित्त गृहस्थ के घर मे प्रवेश करने के पश्चात् साधु को वहाँ बैठना अनाचार है, जिसका वर्णन आगे करेंगे। इससे मिथ्यात्व की प्राप्ति होती है। गृहस्थ के घर बैठने से साधु के ब्रह्मचर्य का भग होने की तथा प्राणियो का वध होने की पूरी सम्भावना होने से सयमनाश का भय बना रहता है । साथ ही कोई भिखारी भिक्षा के लिये आये तो उसे अन्तराय होने की भी सम्भावना रहती है । ठीक वैसे ही गृहस्थ को क्रोध आ जाय यह भी सम्भव है।- - - - - - - - -
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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