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[ श्री महावीर वचनामृत
नाव
स्वयं गृहादि का निर्माण न करे, दूसरों के पास न करवाये और कोई करता हो तो उसका अनुमोदन भी न करे। क्योंकि गृहकार्य के समारम्भ मे अनेक प्राणियों का वव प्रत्यक्ष दिखाई देता है ।
तमाणं धावराणं च सुहुमाणं वायराण य । संजओ
गिहकम्म समारंभ,
{७८ ]
[उत्तः अ० ३५, गा० ६ ]
गृहादिनिर्माण मे त्रस, स्यावर, सूक्ष्म और बादर ( स्थूल ) जीवों इसलिये साबु गृहकार्य समारम्भ का परिवर्जन
का वव होता है ।
करे ।
तहेब
भत्तपाणे, पयणे
परिवज्जए ||१०||
पावणेमु य ।
न पए न पयावर ||११||
[ उत्त० अ० ३५, गा० १० ] इसी प्रकार भोजन बनाने बनवाने में भी जीववव प्रत्यक्ष दिखाई देना है | अतः प्राणियो तथा भूनमात्र की दया के लिये माधु स्वयं भोजन बनाये नही और दूसरों ने भी बनवाये नही ।
पाणभूयद्यड्डाए,
एगयाचेलए होइ, सचेले यात्रि एगया । एवं धम्महियं नच्चा, नाणो नो परिदेवए ||१२|| [ उ० ० अ० २, गा० १३]
दोनों
गाभवन्नरहित होता है तो कभी ममहित मन्याओं को धर्म में हितकारी मानकर उनका सेवन करे ।