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सामान्य साधुधर्म]]
[१७७ सयम मे अनुरक्त महर्षियों को चारित्रपर्याय देवलोक जैसा सुखऐश्वर्य प्रदान करनेवाला होता है। जो सयम मे अनुरक्त नही है, उनके लिए वही चारित्रपर्याय महानरक जैसा कष्टदायक बन जाता है। आयावयाही चय सोअमल्लं,
कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । छिंदाहि दोसं विणएज्ज रागं,
एवं सुही होहिसि संपराए ॥७॥
[दश० अ० २, गा०५] आत्मा को तपाओ (क्लेश पहुँचाओ), सुकुमारता का त्याग करो और कामनाओ को छोड़ दो, इससे दुःख अवश्य दूर होगे। द्वेष को छिन्न-भिन्न करो और राग का उच्छेद करो। ऐसा करने से संसार में सुखी बनोगे।
जे न वंदे न से कुप्पे, वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स, सामण्णमणुचिट्ठइ ॥ ८ ॥
[दश० भ० ५, उ० २, गा० ३०] यदि कोई वन्दन न करे तो क्रुद्ध न होवे और यदि कोई वन्दन करे तो अभिमान न करे। इस प्रकार जो विवेकपूर्वक सयम-धर्म का पालन करता है, उसका साधुत्व स्थिर रहता है।
न सयं गिहाई कुब्बिजा, नेव अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारंभे, भूयाणं दिस्सए वहो ॥६॥
[ उत्तः अ ३५, गा ]
को छोड बचाओ ), सगा०५१