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________________ सत्य] [ १४५ आदि कहा जाता है । जैसे तोते मे अनेक रंग होने पर भी उसे हरे रंग का ही कहते हैं, यह है 'भाव-सत्य'। (६) योग-सत्य-योग अर्थात् सम्बन्ध से किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को पहचानना, वह 'योग-सत्य' कहलाता है। जैसे कि अध्यापक को अध्यापन-काल के अतिरिक्त सयय मे भी अध्यापक कहा जाता है। (१०) उपमा-सत्य-किसी एक प्रकार की समानता हो, उसके आधार पर उस वस्तु की अन्य वस्तु के साथ तुलना करना और उसे तदनुसारी नाम से पहचानना वह उपमा-सत्य कहलाता है। जैसे कि 'चरण-कमल', 'मुख-चन्द्र', 'वाणी-सुधा' आदि । कोहे माणे माया, लोभे पेज्जे तहेव दोसे य । हासे भए अक्खाइय, उवघाए निस्सिया दसमा ॥२३॥ [प्रज्ञापनासुत्र-भाषापद ] क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, हास्य तथा भयभीत होकर बोली जानेवाली भाषा, कल्पित व्याख्या तथा दसमे उपघात (हिंसा) का आश्रय लेकर जिस भाषा का उपयोग किया जाय, वह असत्य भाषा कहलाती है। -
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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