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[श्री महावीर-वचनामृत
४ : नाम-सत्य-गुण-विहीन होने पर भी किसी व्यक्ति अथवा वस्तुविशेष का नाम निर्धारित करना 'नाम-सत्य' कहलाता है। जैसे एक बालक का जन्म किसी गरीव घर मे होने पर भी उसका नाम रख लिया जाता है 'लक्ष्मीचन्द्र'।
५ : रूप-सत्य-किसी विशेष रूप के धारण कर लेने पर उसे उसी नाम से सम्बोधित किया जाता है। जैसे कि साधु का देष पहने हुए देखने पर उसे 'साधु' कहा जाता है।
६:प्रतीत-सत्य-(अपेक्षा-सत्य) एक वस्तु की अपेक्षा अन्य वस्तु को वडी, भारी, हलकी आदि कहना वह 'प्रतीत-सत्य' है । जैसे कि-अनामिका की अंगुली वडी है यह वात कनिष्ठा की अपेक्षा से सत्य है, परन्तु मध्यांगुली की अपेक्षा वह छोटी है।
(७) व्यवहार-सत्य-(लोक-सत्य)-जो बात व्यवहार में । .: बोली जाय वह 'व्यवहार-सत्य' । जैसे कि गाड़ी कलकत्ता पहुचती
है तब कहा जाता है कि कलकत्ता आ गया। रास्ता अथवा मार्ग स्थिर है, वह चल तो सकता नही, फिर भी कहा जाता है कि यह मार्ग आवू जाता है। इसी प्रकार वन मे स्थित घास जलता है, तथापि कहा जाता है कि वन जल रहा है।
(८) भाव-सत्य-जिस वस्तु मे जो भाव प्रघानरूप मे दिखाई पडता हो, उसे लक्ष्य मे रख युक्त वस्तु का प्रतिपादन करना, 'भावसत्य' कहलाता है। कितने ही पदार्थों मे पांचों रग न्यूनाधिक प्रमाण मे रहने पर भी उन रगों की प्रधानता मानकर काला, पीला