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________________ सत्य] [१४३ (६) प्रतीत-सत्य, (७) व्यवहार-सत्य, (८) भाव-सत्य, (६) योग-सत्य और (१०) उपमा-सत्य। __विवेचन-दशवकालिक नियुक्ति मे इन दस प्रकार के सत्यवचनयोग की जानकारी इस प्रकार दी है : १ : जनपद-सत्य-जिस देश मे जैसी भाषा बोली जाती हो वैसी भाषा बोलना, उसे जनपद-सत्य कहते है। जैसे कि "बिल' शब्द से हिन्दी भाषा मे चूहे-सर्प आदि का निवास स्थान समझा जाता है, जबकि अग्रेजी भाषा में "विल' शब्द से मूल्य-पत्रक, [की हुई सेवा के मूल्य का पत्रक] अथवा किसी नियम की स्थापना का पत्रक समझा जाता है। २: सम्मत-सत्य-पूर्वाचार्यों ने जिस शब्द को जिस अर्थ में माना है, उस शब्द को उसी अर्थ मे मान्य रखना, वह है 'सम्मतसत्य । जैसे कि कमल और मेढक दोनों ही कीचड मे उत्पन्न होते है, तथापि पङ्कज शब्द कमल के लिये ही प्रयुक्त होता है, न कि. मेढक के लिये। ३ : स्थापना-सत्य-किसी भी वस्तु की स्थापना कर उसे इस नाम से पहिचानना, यह है, 'स्थापना-सत्य' । जैसे कि ऐसी आकृतिवाले अक्षर को ही 'क' कहना। एक के ऊपर दो बिन्दु और लगा देने से 'सौ' और तीन शून्य जोड देवे तो उसे 'हजार' कहना आदि । शतरज के मुहरों को 'हाथी', 'ऊंट', 'घोडा' आदि कहना यह भी इसीमे आता है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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