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________________ १३८] [श्री महावीर-वचनामृत तो गाय को जाती हुई देखने पर उत्तरदाता ऐसा कह दे-- "हाँ, मैने देखी है, वह उस ओर गई है।" तो परिणामस्वरूप हिंसा होना सम्भव है, क्योकि कसाई उस दिशा में जाकर गाय को पकड लायगा और फिर उसका वध करेगा। अतः ऐसी भाषा नही बोलनी चाहिये। असचमोसं सच्चं च, अणवजमकक्कसं । समुपेहमसंदिद, गिरं भामिज पन्नवं ॥६॥ [दश० अ०७, गा० ३] व्यावहारिक भाषा तथा सत्य भाषा भी जो पापरहित हो, कर्कशता से मुक्त (कोमल) हो, निःसन्देह हो तथा स्व-पर का उपकार करनेवाली हो, ऐसी भाषा का ही प्रयोग प्रज्ञावान् सावक को करना चाहिये। वितहं वि तहामुत्ति, जं गिरं भासए नरो। तम्हा सो पुट्ठो पावणं, किं पुण जो मुसं वए ॥१०॥ [दश० भ० ७, गा०५]. जो मनुप्य प्रकट सत्य को भी वास्तविक असत्य के रूप मे भूल से वोल जाय तो वह पाप का भागी वनता है, तब सर्वथा असत्य बोलनेवाले का तो कहना ही क्या ? वह अनन्त पापो का. भागी वनता है। तहेब फरसा भासा, गुरुभूओवघाइणी । . सच्चा विसा न वत्तबा, जओ पावस्स आगमो॥११॥ [ दशः म०७, गा० ११
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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