________________
अहिसा]
[ १३१ मन्दा निरयं गच्छन्ति,
वाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥३१॥
[उत्त० भ० ८, गा०७] 'हम श्रमण हैं' ऐसा कहनेवाला और प्राणिहिंसा में पाप नही माननेवाले मन्दबुद्धि कुछ अज्ञानी जीव अपनी पापदृष्टि से ही नरक में जाते हैं। न हु पाणवहं अणुजाणे,
मुच्चेज कयाई सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिमक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥३२॥
[उत्त० अ०८, गा०८] जो प्राणिहिंसा का अनुमोदन करता है, वह सर्वदुःखो से कदापि मुक्त नही हो सकता। ऐसा तीर्थङ्करो ने कहा है कि जिनके द्वारा यह साधुधर्म का प्रतिपादन किया गया है।
विवेचन कहने का आशय यह है कि साधु स्वय हिंसा न करे, दूसरों से भी हिंसा न करवाये और कोई हिंसा करता हो तो उसकी अनुमोदना भी न करे। यदि वह अनुमोदना करे तो उसका मोक्षप्राप्ति का ध्येय हो विफल हो जाता है।
तत्थिमं पठमं ठाणं, महावीरेण देसियं । अहिंसा निउणा दिट्ठा, सबभूएसु संजमो ॥३३॥
[ दय० म० ६, गा०६]