________________
धर्माचरण]
[११५
तो क्या उस समय वह धर्माचरण कर सकेगा? उस समय उसकी गारीरिक शक्तियां क्षीण हो जाती है, छोटी-बड़ी अनेक प्रकार की व्याधियां शरीर को ग्रस्त कर लेती है और इन्द्रियाँ यथेष्ट कार्य करने मे प्रायः असमर्थ होती है। ऐसी स्थिति मे भला किस तरह धर्माचरण हो सकता है ? अतः सुज्ञ मनुष्य को आरम्भ से ही धर्म का आचरण कर लेना चाहिये। साथ ही यह वात ध्यान मे रखनी चाहिये कि जिसने बाल्यकाल मे अथवा यौवन मे धर्माचरण नही किया, उसे वृद्धावस्था में धर्म प्रिय नही लगता । फलतः जबसे मनुष्य कुछ समझने लगता है तब से ही उसे धर्माचरण करना आरम्भ कर देना चाहिये।
जा जा बच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥ ४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ ॥ ५ ॥
[ उत्त० अ० १४, गा० २४-२५ ]
जो-जो रात्रियाँ बीतती है वे पुनः लौटकर नही आती और अधर्मी की रात्रियाँ हमेशा निष्फल बीतती है।
जो जो रात्रियाँ बीतती हैं वे वापस लौट नही आती और धर्मी की रात्रियाँ हमेशा सफल होती है।
विवेचन-जो-जो रात बीतती है, वह पुनः लौट नही आती; वैसे ही जो-जो दिन बीतता है, वह भी पुनः लौट नही आता।