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________________ [१११ साधना-क्रम] १ : क्षुधापरीषह-भूख से उत्पन्न वेदना सहन करना। २: तृषापरीषह-तृषा से उत्पन्न वेदना सहन करना। ३: शीतपरीषह-ठण्ड से होनेवाली वेदना सहन करना। ४ : उष्णपरीषह-ताप से उत्पन्न वेदना सहन करना। ५ : दंश-मशकपरीषह-मच्छरो के काटने से उत्पन्न वेदना सहन करना। ६ : अचेलकपरीषह-वस्त्र रहित अथवा फटे हुए वस्त्रवाली स्थिति - से दुखी नही होना। ७ : अरतिपरीषह-चरित्र पालन करते हुए मन मे ग्लानि न होने देना। ८ स्त्रीपरीषह-स्त्रियो के अग-प्रदर्शन से मन को विचलित न होने देना। ६ : चर्यापरीपह-किसी एक गाँव अथवा स्थान के प्रति ममत्व न रखते हुए राष्ट्र में विचरण करते रहना और इस प्रकार के विहार-परिभ्रमण मे जो कष्ट आए, उसे शान्तिपूर्वक सहन करना। १० : निषद्यापरीषह-स्त्री, पशु, और नपुसकरहित स्थान मे रह कर एकान्त सेवन करना। ११ : शय्यापरीपह-शयन का स्थान अथवा गवन के लिये पटिया आदि जो भी मिले उसके लिए दुःखी न होना। १२ : आक्रोशपरोषह-कोई मनुष्य आक्रोग-कोव करे, तिरस्कार करे, अपमान करे उसे शान्ति से सह लेना।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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