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[श्री महावीर-वचनामृत १३ : वधपरीषह-कोई मारपीट करे तो भी शान्ति से सह लेना। १४ : याचनापरीषह-साधु को प्रत्येक वस्तु मांग कर ही प्राप्त
करना चाहिये, अतः मन मे ग्लानि नहीं लाना। १५ : अलाभपरीषह-भिक्षा मांगने पर भी कोई वस्तु न मिले तो,
उसके लिये सन्ताप न करना। १६: रोगपरीषह-चाहे जैसा रोग अथवा व्याधि उत्पन्न क्यों न
हुई हो किन्तु चीखना-चिल्लाना अथवा रोना-पीटना नहीं।
साथ ही तत्सम्बत्वी सभी वेदनाएं गान्ति-पूर्वक सहना। १७ : तृणस्पर्शपरीषह-बैठते-उठते तथा सोते समय दर्भादि तृणों के
कठोर स्पर्श को शान्तिपूर्वक सह लेना।। १८ : मलपरीषह-पसीना तथा विहार आदि के कारण शरीर पर
मैल जम जाने पर भी स्नान की इच्छा नही करना। १६ मित्कारपरीपह-कोई कैसा भी सत्कार क्यों न करे उसमे अभि
मान न करते हुए मन को वश में रखना और यह सत्कार
मेरा नही अपित चरित्र का हो रहा है, ऐसा मानना । २० : प्रज्ञापरीषह-बुद्धि अयवा ज्ञान का अभिमान नही करना। २१ : अनानपरीपह-अत्यधिक परिश्रम करने पर भी सूत्रसिद्धान्त
का चाहिये जितना वोव न हो तो उससे निराग न होना। २२: सम्यक्त्वपरीपह-क्निी भी स्थिति में सम्यक्त्व को डावांडोल
न होने देना तया उसका संरक्षण करना ।
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