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________________ मोक्षमार्ग] [१०३ सूत्रार्थ का उत्तम प्रकार से चिन्तन तथा धैर्य, ये एकान्तिक सुखरूप मोक्षप्राप्ति के मार्ग है। विवेचन-मोक्षमार्ग के पथिक मे कुछ और भी गुण होने चाहिये, जो यहाँ दिखाये गये है :१ : गुरु की सेवा-ज्ञान दे वे गुरु। उनके प्रति विनय रखने से, उनकी सेवा करने से शास्रो का रहस्य समझ मे आता है और मोक्ष की साधना मे शीघ्र आगे बढ़ सकता है। २ : वृद्ध सन्तो की सेवा-यह भी गुरु सेवा के समान ही उपकारक है । ३ : अज्ञानियो की सगति का त्याग-जो बालभाव मे क्रीड़ा कर रहे है, उन्हे अज्ञानी समझना चाहिये। उनकी सगति करने से मोक्षसाधना का उत्साह शिथिल हो जाता है, अथवा उससे भ्रष्ट होने का प्रसग भी आ जाता है। इसलिये उनकी सगति का परित्याग करना चाहिये। सगति करना हो तो परमार्थ जाननेवाले ज्ञानियो की ही करनी चाहिए ताकि कल्याण की प्राप्ति हो। ४ : स्वाध्याय-आसप्रणीत शास्त्रो का अभ्यास । ५: एकान्त-निषेवण-एकान्त मे रहना। ६ : सत्रार्थ का उत्तम प्रकार से चिन्तन-सूत्र और अर्थ दोनो का अच्छी तरह चिन्तन-मनन करने पर मन का विक्षेप टल जाता है और मोक्षसाधना के उत्साह मे वृद्धि होती है। ७: धैर्य-चित्त की स्वस्थता।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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