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[श्री महावीर-वचनामृत
७ : इर्यासमिति समिति अर्थात् सम्यक प्रवृत्ति । इसके पांच प्रकार
हैं :-(१) ईर्या-समिति, (२) भाषा-समिति, (३) एषणासमिति, (४) आदान-निक्षेप-समिति और (५) पारिष्ठापनिका-समिति। इन पांचो समितियों का पालन सयमसाधना में अत्यन्त उपकारक सिद्ध होता है। तीन गुप्तियों और पांच समितियो को अष्टप्रवचन-माता कहा जाता है। इसका
वर्णन इस ग्रन्य की अठारहवी धारा मे किया गया है। ८:धैर्य-चित्तस्वास्थ्य। जिस साधक का चित्त स्वस्थ नहीं है,
वह मोक्षमार्ग की साधना मे आगे प्रगति नही कर सकता। चाहे कष्टों के पहाड ही न टूट जाय तो भी उसे सहन
करने की तैयारी रखनी चाहिये। ६ : सत्य-सत्य की उपासना, सत्य के प्रति आग्रह । १० : तप-यहाँ तप शब्द से इच्छानिरोघरूपी तप समझना चाहिये। ११ : कर्मरूपी कवच का भेदन-समस्त कर्मों का क्षय । तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा,
विवजणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगंतनिसेवणा य,
सूत्तत्थसंचिंतणया धिई य ॥१८॥
[उत्त० अ० ३२, गा०३] गुरु और वृद्ध सन्तों की सेवा, अज्ञानी जीवों की सगति का दूर से ही त्याग, स्वाध्याय, स्त्री-नपुसकादि रहित एकान्तस्थल का सेवन