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________________ ६६] [श्री महावीर वचनामृत __ पहला सामयिक नाम का चारित्र है, दूसरा छेदोपस्थापनीय नामक चारित्र है, तीसरा परिहारविशुद्धि नामक चारित्र है और चौथा सूक्ष्मसपराय नामवाला चारित्र है। कषाय से रहित चारित्र यथाख्यात कहलाता है। वह छद्मस्थ और केवली को होता है। भगवान ने कहा है कि ये पांचो चारित्र कर्मों का नाश करनेवाले है। विवेचन-आत्मा को शुद्ध दशा मे स्थिर करने का प्रयत्न चारित्र है। इसीको सवर, सयम, त्याग अथवा प्रत्याख्यान भी कहा जाता है। परिणामशुद्धि के तरतमभाव की अपेक्षा से चारित्र के पांच प्रकार किये गये हैं। छद्म अर्थात् परदा। अव तक जिसके ज्ञान पर परदा है, वह है छमस्थ। केवलज्ञान होने से पूर्व सभी आत्माएं इस अवस्था मे रहती है। ___ मन, वचन और काया से पापकर्म नही करना, नही कराना तथा करते हुए को अनुमति नही देना, ऐसे सकल्पपूर्वक जो चारित्र ग्रहण किया जाता है, उसे सामायिक चारित्र कहते हैं। यह चारित्र व्रतधारी गृहस्थों मे अल्पाश तथा साघुओं मे सर्वाश मात्रा मे होता है। नये शिष्य को दशवकालिक-सूत्र का पड्जीवनिका नामक चौथा अव्ययन पढाने के बाद जो बडी दीक्षा दी जाती है, उसे छेदोपस्थापनीय चारित्र कहते हैं अथवा एक तीर्थङ्कर के साधु को अन्य तीर्थडर के शासन मे प्रवेश करने के लिये नया चारित्र ग्रहण करना पड़ता है, उसे भी छेदोपस्थापनीय चारित्र कहते हैं। श्री पार्श्वनाथ भगवान् के चातुर्याम व्रतवाले साधुओं ने पांच महाव्रतवाला श्रीमहावीर
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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