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मोक्षमार्ग ]
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रहित हो तो उसका चारित्र सम्यक् नही कहलाता और इसी कारण उसके द्वारा उसे मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती ।
यहाँ तप का समावेश सम्यक् चारित्र मे ही किया गया है, अतः -उसकी पृथक गणना नही की गई ।
सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र - इन तीन साधनो को रत्नत्रयी कहते है । श्री उमास्वातिवाचक ने तत्त्वार्थाघिगमसूत्र के प्रारम्भ मे मोक्षमार्ग के साघनरूप मे इस रत्नत्रयी का ही उल्लेख किया है ।
उपर्युक्त तीन साधनो का सक्षेप ज्ञान और क्रिया इन दो साधनो में किया जाता है; वहाँ दर्शन का समावेश ज्ञान मे किया जाता है, और चारित्र के स्थान पर क्रिया शब्द बोला जाता है । 'नागकिरियाहिं मोक्खो,' ये वचन उसके लिये प्रमाणभूत हैं । तात्पर्य यह 'कि यहाँ मोक्षमार्ग के चतुर्विध साधनो का वर्णन किया गया है, किन्तु ये साधन चार ही होते है, इनसे न्यूनाधिक नही हो सकते, ऐसा एकान्तिक आग्रह नही है । अपेक्षाभेद से इन साधनो की संख्या न्यूनाधिक हो सकती है ।
सामाइय त्थ पढमं, छेओवट्ठावणं भवे वीयं । परिहारविसुद्धीयं, सुहुमं तह संपरायं च ॥६॥ अकसाय महक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स वा । एवं चयरितकरं चारितं होइ आहियं ॥ १०॥ [ उत्त० अ० २८, गा० ३२-३३ ]