________________
६०]
[श्री महावीर-वचनामृत ऐसा जो स्मरण, वह धारणा कहलाती है। लकडी का स्पर्श होते ही 'लकडी का स्पर्श मझे हमा' ऐसा अनभव होता है। किन्त इतनी अवधि मे तो उक्त चारों क्रियाएँ अत्यन्त शीघ्रता से हो जाती हैं। अज्ञात वस्तु का स्पर्श होने पर ये क्रियाएं मन्दगति से होती हैं, तव उसका ज्ञान होता है, जबकि चिरपरिचित वस्तु मे उपयोग अति शीघ्र रहता है, इसलिये उसका ज्ञान नही होता। .
श्रतज्ञान का सादा अर्थ है--सुनकर प्राप्त किया हुआ ज्ञान । हम व्याख्यान सुनकर अथवा पुस्तक पढकर जो ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह यह दूसरे प्रकार का श्रुतज्ञान है।
प्रत्येक ससारी जीव मे ये दोनो ज्ञान व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप मे अवश्य रहते हैं। ___ आत्मा को रूपी द्रव्यो का अमुक काल और अमुक क्षेत्र तक मर्यादित जो ज्ञान होता है वह है अवधिज्ञान । दूसरे के मन के पर्यायों-भावों का जो ज्ञान होता है वह है मनःपर्यव अथवा मनःपर्यवज्ञान है, और प्रत्येक वस्तु के सभी पर्यायों का सर्वकालीन जो ज्ञान होता है वह है केवलज्ञान ।
अवधिज्ञान नारकीय और देव के जीवों को सहज मे होता है अर्थात् वे जन्म लेते हैं तब से ही अवधिज्ञान से युक्त होते हैं, जबकि तिर्यच तथा मनुष्यों को यह ज्ञान विशिष्ट लब्धि से प्राप्त होता है । मनःपर्यव और केवलज्ञान केवल मनुष्य को ही प्राप्त होता है और उसके लिये विशिष्टावस्था की अपेक्षा रहती है। , अवधि, मनःपर्यव और केवल ये तीनों ज्ञान इन्द्रिय और मन