________________
७८
[श्री महावीर-वचनामृत (६) युग का दृष्टान्त-युग अर्थात् धुरा जूड़ा । बैल के कन्धे पर उसे वरावर बिठाने के लिये लकडी के एक छोटे डण्डे का उपयोग किया जाता है। यदि वह जूडा महासागर के एक छोर से पानी मे डाली गई हो और दूसरे छोर से लकड़ी, तो भला उस जूडे पर वह लकड़ी कब बैठ सकेगी ?
(१०) परमाणु का दृष्टान्त-एक स्तम्भ का अत्यन्त महीन चूर्ण करके फूंकनी मे भर दिया हो और किसी पर्वत के शिखर पर खड़ा होकर फूंक द्वारा उसे हवा में उड़ा दिया जाय तो भला उक्त चूर्ण के सभी परमाण पुनः कब एकत्र हो सकते हैं ? __यदि इन सभी प्रश्नों का उत्तर 'बहुत समय और बहुत कष्ट के बाद' यही है तो मनुष्यजन्म भी दीर्घाववि के पश्चात् और अत्यधिक कष्टों के बाद प्राप्त होता है, अर्थात् वह अतिदुर्लभ है। माणुस्सं विग्गहं ल , सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोचा पडिवजन्ति, तवं खन्तिमहिंसियं ॥८॥
कदाचित् मनुष्यजन्म मिल भी जाय तो भी धर्मशास्त्र के वचन सुनना अत्यन्त दुर्लभ है, जिन्हे सुनकर जीव तप, क्षमा तथा अहिंसा को स्वीकार करता है।
आहच सवणं लद्ध, सद्धा परमदुल्लहा । सोचा गेयाउयं मग्गं, वहवे परिभस्सई ॥ ६ ॥
कदाचित् धर्मशास्त्रों के वचन सुन भी ले, तो भी उस पर श्रद्धा होना अति दुर्लभ है। न्यायमार्ग पर चलने की बात सुनकर भी बहुत