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________________ दुर्लभ सयोग ] [ ७७ (५) रत्न का दृष्टान्त - सागर मे प्रवास करते समय पास मे रहे रत्न अगाध जल मे डूब जायँ तो भला खोज करने के बावजूद भी वे रत्न कब तक मिल सकेंगे ? (६) स्वप्न का दृष्टान्त - राज्य की प्राप्ति करानेवाला शुभ स्वप्न देखा हो और उससे राज्य की प्राप्ति भी हो गई हो । यदि ऐसा ही स्वप्न पुनः लाने के लिये कोई प्रयत्न करे, तो भला ऐसा स्वप्न पुनः कब ला सकता है ? (७) चक्र का दृष्टान्त - चक्र अर्थात् राधावेध | खम्भे के ऊंचे सिरे पर यन्त्र - प्रयोग से चक्राकार मे एक पुतली घूमती हो, उसका नाम राधा । स्तम्भ के नीचे तेल की कढाई उभलती हो, खम्भे के मध्य भाग मे एक तराजू बिठा दिया गया हो और उसमे खड़े रहकर नीचे की कढाई मे पडे राधा के प्रतिबिंब के आधार पर बाण मारकर उसकी बाई आँख बीघना हो तो भला कब बीघ सकता है । (८) चर्म का दृष्टान्त-यहां चर्म शब्द का अर्थ चमडे जैसी मोटी सरोवर के ऊपर की शैवाल है । किसी पूर्णिमा की रात्रि मे वायु के तेज झोका से शैवाल जरा इधर-उधर हो जाय, फलस्वरूप उसके नीचे छिपा हुआ कोई कछुआ चन्द्रमा के दर्शन कर ले और यदि वह पुनः वैसा ही चन्द्र-दर्शन अपने सगे-सम्बन्धियो को कराना चाहे तो भला कब करवा सकता है ? वायु के झोको से उसी स्थान पर शैवाल का इधर-उधर खिसकना और वैसे ही पूर्णिमा को रात्रि का होना, यह सब कितना दुर्लभ है ?
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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