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[श्री महावीर-वचनामृत
से जीव-शुद्धि को पाता है और किसी समय मनुष्ययोनि मे जन्म धारण करता है। __ विवेचन–अज्ञान अथवा मूढ दशा मे दुःख सहन करते हुए कर्म की जो निर्जरा होती है, वह अकामनिर्जरा कहलाती है।
मानव-जन्म की दुर्लभता समझने के लिये श्रीभद्रबाहुस्वामी ने श्री उत्तराध्ययन-सूत्र की नियक्ति मे निम्नलिखित दस दृष्टान्त दिये हैं :
(१) चूल्हे का दृष्टान्त-चक्रवर्ती राजा छह खण्ड पृथ्वी का अधिपति होता है। उसके राज्य में कितने चूल्हे होते हैं ? प्रथम चक्रवर्ती के चूल्हे पर भोजन हो और वाद मे प्रत्येक चूल्हे पर भोजन करना हो तो चक्रवर्ती के चूल्हे पर भला पुनः भोजन का कव अवसर आवे ?
(२) पासों का दृष्टान्त-किसी खेल में यन्त्रमय पासों का उपयोग करके किसी का सारा धन जीत लिया गया हो और उस 'पराजित मनुष्य को अक्ष-क्रीड़ा से फिर अपना धन प्राप्त करना हो, तो भला कब तक प्राप्त हो?
(३) धान्य का दृष्टान्त-लाखों मन घान्य के ढेर मे यदि सरसो के थोडे दाने मिला दिये हों और उन्हें वापस निकालने का प्रयत्न किया जाय तो भला कव मिल सकते हैं।
(४) धूत-क्रीडा का दृष्टान्त-किसी राजमहल के १००८ स्तम्भ हो और उनमे से प्रत्येक स्तम्भ के १०८ विभाग हों तथा उक्त प्रत्येक विभाग को जूआ मे जीतने पर ही राज्य मिलता हो, तो भला वह राज्य कब मिल सकेगा ?