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________________ कर्म के प्रकार ] [ ७३ जघन्य अर्थात् कम से कम और उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक कितना प्रमाण होता है; इसी बात का यहाँ स्पष्टीकरण किया गया है । नौ समय से लेकर दो घडी मे एक समय न्यून को अन्तर्मुहूर्त कहते हैं । उदहीसरिसनामाणं, सत्तरिं कोडिकोडीओ । | मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अन्तोमुहुत्तं जहणिया ॥ १८ ॥ तित्तीसं सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अन्तोमहुत्तं जहणिया ॥ १६ ॥ उदहीसरिसनामाणं वीसई कोडिकोडिओ | नामगोत्ताण उक्कोसा, अट्ठ मुहुत्ता जहणिया ॥२०॥ [ उत्त० अ० ३३, गा० २१-२२-२३ ] मोहनोयकर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोडी सागरोपम और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है । आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैतीस सागरोपम और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है । नामकर्म और गोत्रकर्म की उत्कृष्ट-स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की होती है ।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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