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________________ कर्म के प्रकार] साया अनन्तानुबन्धी-बांस के कठोर जड जैसी, जो किसी प्रकार अपनी वक्रता को नही छोडती।। अपत्याख्यानी-भेड़ के सीग जैसी, जो बडे प्रयत्न से अपनी वक्रता __ छोडती है। प्रत्याख्यानी-बैल के मूत्र की धारा जैसी, जो वायु के झोके से दूर हो जाय। संज्वलन-बॉस की चीपट के समान । लोम अनन्तानुबन्धी-किरमच के रग जैसा, जो एक बार चढने पर उखड नही जाता। अप्रत्याख्यानी-गाडी के कीटे जैसा, जो एक बार वस्त्र को गन्दा __ कर लेने पर बहुत प्रयत्न से मिटता है। प्रत्याख्यानी-कीचड जैसा कि जो कपडो पर पड जाने पर सामान्य प्रयत्न से दूर हो जाता है। सज्वलन-हल्दी के रंग जैसा जो सूर्य की धूप लगते ही दूर हो जाय। नोकषाय के सात प्रकार होते है :-(१) हास्य, (२) रति, (३) अरति, (४) भय, (५) शोक, (६) जुगुप्सा और (७) वेद (जातीय सज्ञा--Sexual instinct )। यदि वेद के स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुसकवेद आदि तीन प्रकार मान लें तो हास्यादि छह और तीन वेद मिलकर नौ प्रकार हो जाते है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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