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[श्री महावीर-चकनामृत निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानद्धि ( थीणद्धी ) इस तरह निद्रा के पांच प्रकार है।
इसके अतिरिक्त चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्गनावरणीय तथा केवलदर्शनावरणीय इस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के अन्य और चार प्रकार है। अतः दर्शनावरणीय कर्म के कुल नौ । प्रकार समझने चाहिये।
विवेचन-निद्रादर्शनशक्ति का अवरोध करनेवाली होने से उसकी गणना दर्शनावरणीय कर्म मे होती है। (१) मुखपूर्वक अर्थात् गन्दमात्र से जगा सके ऐसी निद्रा 'निद्रा कहलाती है। (२) दुःखपूर्वक अर्थात वहुत मकझोरने से जगाया जा सके ऐसी निद्रा 'निद्रानिद्रा कहलाती है। (३-४) बैठे अयवा खडे-खडे ही निद्रा आ जाय लेकिन उनमे से सुखपूर्वक जगाया जा सके ऐसी निद्रा को 'प्रचला'
और दुःखपूर्वक जगाया जा सके उसे 'प्रचला-प्रचला' कहते हैं। (५) जिसमे दिन मे चिन्तित कार्य कर लिया जाय और कुछ पता ही न लगे, ऐसी गाढ निद्रा को 'स्त्यानद्धि अथवा 'योणतो' निद्रा कहते हैं। इस निद्रा मे मनुष्य का बल असाधारण रूप में वड जाता है। विज्ञान ने भी ऐसी निद्रा की सूचना दी है और इससे सम्बद्ध अनेक उदाहरणों का संग्रह किया है।
(E) जो चक्षुरिन्द्रिय द्वारा होनेवाले सामान्य बोव को रोक दे वह बग्दर्शनावरणीय, (७) जो चनु के अतिरिक्त गेम गर न्द्रियाँ तथा पांचवे मन के द्वारा होते हुए सामान्य बोव को रोके वह बचादानापरणोप, (८) जो आत्मा को होनेवाले स्पा द्रव्य के सामान्य