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________________ संसारी जीवों का स्वरूप] मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमारा य वोधवा, पंचहा जलराहिया ॥४२॥ [उत्त० अ० ३६, गा० १७२ ] जलचर जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं :-(१) मच्छ (मछलियों को जाति), (२) कच्छप (कछुए की जाति), (३) ग्राह (घड़ियाल की जाति), (४) मगर और (५) संसुमार (ह्वल आदि की जाति)। चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउचिहा, ते मे कित्तयओ सुण ॥४३॥ [उत्त० अ० ३६, गा० १७६ ] स्थलचर जीव दो प्रकार के है :-चतुष्पद और परिसर्प। इनमे चतुष्पद चार प्रकार के है। इनके भेद मेरे द्वारा सुनो। एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपय सणप्पया। हयमाई गोणमाई, गयमाई सीहमाइणो ॥४४॥ [ उत्त० अ० ३६, गा० १८० ] (१) एक खुरवाले--अश्व आदि । (२) दो खुरवाले-गायआदि । (३) गण्डीपद-हाथी आदि और (४) सनखपद-सिंह आदि । भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई, इक्केका इणेगविहा भवे ॥४॥ [उत्त० अ० ३६, गा० १८१] परिसर्प दो प्रकार के होते है :-(१) भुजपरिसर्प-गोह, गिरगीट आदि। और (२) उर-परिसर्प-सर्प, अजगर आदि। ये प्रत्येक भी अनेक प्रकार के होते है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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