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________________ ४४] [श्री महावीर-वचनामृत चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपस्वी य बोधवा, पक्विणो य चउनिहा ॥४६॥ [उत्त० म०३६, गा० १८८] खेचर अर्थात् पक्षी चार प्रकार के होते हैं :-(१) चर्मपक्षीचमडे की पंखवाले, चमगादर आदि। (२) रोमपक्षी-रोमवाली पंतवाले, गजहस आदि। (३) समुद्गपक्षी-आवेष्ठित पंखवाले और (४) विततपक्षी-जिनके पख सदा खुले रहते हैं। ये दोनो मानुपोत्तर 'पर्वत से बाहर होते है। मगुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । समुच्छिमा य मणुया, गन्भवतिया तहा ॥४॥ [उत्त० म० ३६, गा० १९५] मनुष्य के दो भेद है, वे मेरे द्वारा सुनो:-सम्मूछिम और गर्भाविवेचन-मनुष्य के देश, रंग और जाति के अनुसार भेद होते हैं। देवा चउनिहा वुत्ता, ते मे कित्तय सुण । भोमिज्ज" बाणमंतर-जोड्स-वेमाणिया तहा ॥४८|| [उत्त० मा ३६, गा २०४] देव चार प्रकार के कहे गये हैं। उनके भेद मेरे द्वारा सुनो। (१) भुवनपति, (२) वाणयतर, (३) ज्योतिप और (४) वैमानिक । दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वैमाणिया तहा ॥४६॥ [टत्त म०३६, गा० २०५] है
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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