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________________ ससारी जीवों का स्वरूप ] [ ३३ दुविहा आऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । एवमेए दुहा पुणो ॥ ११ ॥ पज्जत्तमपज्जत्ता, वायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय उस्से, हरतण महिया हिमे ॥ १२ ॥ २ [ उत्त० भ० ३६, गा० ६४-६५ ] अपकायिक जीव के दो प्रकार है :-सूक्ष्म और बादर । ठीक वैसे ही इनके पुनः पर्याप्त और अपर्याप्त - ऐसे दो भेद होते है ! जो बादर पर्याप्त अप्काय जीव है, वे पाँच प्रकार के कहे गये है : - ( १ ) शुद्धोदक - मेघ का जल, (२) ओस, (३) तृण के ऊपर के जलबिन्दु, (४) कुहासा ओर (५) बर्फ | -- विवेचन -- अपकायिक सूक्ष्म जीव पृथ्वीकायिक सूक्ष्म जीवो के समान ही सूक्ष्म हैं और वे सब लोक मे व्याप्त है । दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा वायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ १३॥ वायरा जे उपज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ १४ ॥ पत्तेअसरीराओ, ऽणेगहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तथा तहा ॥ १५ ॥ वलया पव्वया कुहणा, जलरुहा ओसही तहा । हरियकाया य बोधव्वा, पत्तेया इति आहिया ॥ १६ ॥ m
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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