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श्री महावीर वचनामृत
२६ : स्फटिक और लोहिताक्ष । २७ : मरकत और मसारगल्ल । २८ : भुजमोचक। २६ : इन्द्रनील। ३० . चन्दन-गरिक और हसगर्भ । ३१ : पुलक । ३२ : सौगन्चिक । ३३ : चन्द्रप्रभ । ३४ : वैडूर्य । ३५ : जलकान्त। ३६ : सूर्यकान्त ।
रत्नपरीक्षा आदि ग्रन्थों मे इन रलों का विशेष वर्णन दिया हुआ है। ये सभी रत पृथ्वी में होते हैं तब जीवन-शक्ति से युक्त होने के कारण इनकी गणना पृथ्वीकायिक जीवों में की जाती है। वाहर निकलने के पश्चात् इनमे जीवन-शक्ति नही रहता। अतः ये अजीव माने जाते हैं।
एएसि वण्णओ चव, गंधओ रसफासओ। मंठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्समा ॥१०॥
[उत्तः १० ३६, गा० ८३] इन जीवों के वर्ग, गन्य, रस, स्पर्ग और संस्थान द्वारा हजारों भेद होते है।