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________________ धारा ३: संसारी जीवों का स्वरूप संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया। तसा य थावरा चेव, थावरा ति विहा तहिं ॥१॥ [ उत्त० म० ३६, गा० ६८] ससारी जीव दो प्रकार के होते है :-त्रस और स्थावर । उनमे से स्थावर के तीन प्रकार है। विवेचन-सिद्ध के जीवों का वर्णन पूरा हुआ। अब ससारी जीवों का वर्णन आरम्भ होता है। ससारी जीव दो प्रकार के होते है :(१) त्रस अर्थात् चर-हिलने-डुलनेवाले गतिशील और (२) स्थावर अर्थात् अचर-स्थिर । पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेते थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥२॥! [उत्त० म० ३६, गा० ६६ ] स्थावर जीव पृथ्वीकायिक, अपकायिक और वनस्पतिकायिक ऐसे तीन प्रकार के हैं, जिनके भेद मेरे द्वारा सुनो। विवेचन-पृथ्वी-मिट्टी ही जिसकी काया है वह पृथ्वीकायिक जीव, अप-पानी ही जिसकी काया है वह अपकायिक जीव; और
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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