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सिद्ध जीवों का स्वरूप]
[ २५ तं ठाणं सासयं वासं, लोगग्गंमि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयंति, भवोहन्तकरा मुणी ॥ १४ ॥
[ उत्त० अ० २३, गा० ८४ ] हे मुने । वह स्थान शाश्वत निवासरूप है, लोक के अग्रभाग पर स्थित है, किन्तु वहाँ पहुँचना अत्यन्त कठिन है। जिन्होने उस स्थान को प्राप्त किया है, उनके ससार का अन्त आ जाता है और उन्हे किसी प्रकार का शोक नही होता।