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________________ ऋपभदेव भगवत नवाणु पूर्व वार सिद्धगिरी कारण के, माझ आ रीतन नीर्थयायानु गमन उपर पधारी तीर्थनो महिमा वर्णव्यो छे तवीज मारा अनत समार भ्रमणने टाळनान छ " रीते वीजा वीस तीर्थकरो पण आ तीर्थपरकीयामा प्रत्येनी आ प्रेम, आ अनुराग पधारी तीर्थयात्रानु फळ वर्णवी गया छे आत्मामा प्रगटे तोज आत्मान कल्याण थाय अढार देशना महाराजा कुमारपाल के जेओ समारनी याग्राओ नो अनती थई, पण उल्हान गुजरातना पाटनगर पाटण गहेरमा चोपन वर्पनी अने विधिपूर्वक तीर्थयात्रा थई जाय तो आन्मानो वये राजगादीपर आवे छे, पू कलिकालसर्वज्ञ निम्नार जरूर थई जाय आचार्य भगवन्त श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महा- तीर्थयात्रा प्रन्यनो तथा यात्रा करनार राज पामे सित्तेरमे वर्षे वार व्रत स्वीकारी भाविको प्रत्येना वहमान नथा भक्ति जे मव्याश्रावक धर्मनी आराधना करवा भाग्यगाळी न्माओना हयामा जागे छे तेया आत्मानी मनोवन्या छे, पूज्य गुरुदेवना श्रीमखेथी तीर्थयात्रानो वृत्ति केवी अलौकिक ने अद्भूत होय छे ते माटे अने तेमाय श्री सिद्धगिरीजी तीर्थनो महिमा माभळी, पूज्यश्रीनी छत्रछायामा छऽरी पाळता वस्तुपाल महामत्रीश्वरना जीवननो आ एकज मघ माथे जवानो निश्चय करी तेओ शुभ प्रयाण प्रमग आपणनं प्रेरणादायी छे करे छे सित्तेर वर्पनी उपरनी वृद्ध वये उघाडा नागपूग्ना पुनड नामना मुधावकनो दिल्हिना पगे चालता यात्रा करवा सज्ज थयेला परमात वादगाह मोजद्दीन साथै घणो गाढ मवध छे कुमारपाळ राजाने आचार्य भगवत कहे छे के, वादशाहनी पत्नी प्रेमकलाए पुनडने पोताना " राजन् ! आटली वृद्ध वये पगे चालवु, ते पण भाई तरीके मानेल छ पूनद थावकप्ठिए तीथ उघाडा पगे चालीने यात्रा करवी तमारा मारे भक्तिथी प्रेगईने श्री सघ माथे वे वखन तीर्थमुश्केल छे, माटे आवश्यकता लागे तो पगे उपा- यात्राओ करी छे तमा प्रथम यात्रा वि म नह तेमज वाहनादिनो उपयोग करी काय छे" १२७३ मा करी ने बीजी वधारे आडवरपूर्वक तीर्थ अने तीर्थयात्रा प्रत्ये रग-रगमा अपार मवत १२८६ मा छरी पाळता श्री संघ सार्थ प्रेम अने अनुपम भक्ति जेना आत्मामा भरेली करी पुनडना मधमा वादशाहे दरेक प्रकारनी छे ते परमार्हत् कुमारपाळ राजा जवाव आपे छ सहाय ने सामग्री आपेली छे ते मघ पाछो वळना के, " भगवन् । आज मुधीमा मे बहु भ्रमण महामत्रीश्वर वस्तुपालनी विनतीथी धवलकपूरकर्यु छे अनत काळसुधीना भव भ्रमणने वाजुए घोळका पधारे छं त्वारे मत्रीश्वर सघनी सामे राख्नु तो आज भवमा, केवळ राज्य मेळववानी जईने यात्रिकोना चरणनी धूळ माथे चढावे छ तृष्णामा ने जीववानी मथामणमा घणुज रखडयो श्री तीर्थपाथरजसा विरजीभवति छु न खावानु ठेकाणु न पीवान ठेकाणु-उघाडा तीर्थेपुच भ्रमण तो न भवे गतिश्च पगे ने उघाडा माथे खूवज रखडपट्टी करी छे द्रव्यव्ययादिह नरा स्थिरमपद म्यु पण भगवत | मारु ए सघळुये परिभ्रमण निर- पूज्या भवन्ति जगदीगमथार्चयन्त । र्थक गयु, हवे तो भगवाननी आजानुसार चालीने तीर्थयात्रा करीने आवेला यात्रिकोना चरणनी हु श्री सिद्धागिरीजी महातीर्थनी यात्रा करीश, रजयी भव्य जीवो कर्म-रजथी मुक्त थाय छ, ने १०० ] [श्री कुभोजगिरी शताब्दि महोत्सव
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
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