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________________ ( ७३ ) दयाधर्म रूचे नहीं तुजको । बोल नजाने बागो बणज किया वैपारीतुमको। क्याफलहाथे लागो ॥अ३ आवागमनका चरखाडौले । जैसे भाडाकोतांगो क्यों सोते हो अपनी नींद मे । अबतो सज्जन जागो ॥ अ४ गुजरगइ वापिस नहीं आती । जैसो सुरंगनीरागो जो खुद आपही फेरेउघाडा। गोया उसको नागो।अ५ क्या वक्सीस करेगा तुमको | कमल केसरीवागो धर्म तख्त के उपर बैठे। पकडे चारों पागो || अ६ तप जप खरची बान्धी पल्ले | पाप अष्टादश त्यागो ॥ हीरालालको जन्म सुधार्यो । वामीजीवडभाग ॥अ७ ॥ पद - शिक्षा किसे लगे || देशी वरोक्त || अकल विन, नहीं लागे २ | सतगुरु सीख शुद्धज्ञान | पुण्य विन० || अकल || आतिश होवे तो तेजी जागे । भश्मीकोक्या थागे ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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