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________________ ( ६५ ) क्षमा खड्ग जोलिया हाथमें । दुर्जन के घर हानी | को॥५ क्रोधी नर मरकर दुर्गति में । जन्म लेत है जानी ॥ श्वान सर्पविली मरकटको । भव संचितविकलानी ॥ को६ जवाहरलालजी गुरू गुणवंता । शीतलचंद समानी ॥ हीरालालपीवोउपशम रस। केवल प्रगटेआनीको ७ || पद - सम्यक्त्वको हितशिक्षा || देशी वरोक्त | समकित शुद्ध राखो शुद्ध राखो । आयो हाथेरत्नमती न्हाखो || समकित || ढेर || कुरदेव धर्मकी सेवा | स्वपनामें मत झांखो ॥ उवट वाट घाट दुर्गतिका । संगन कीजे यांको ॥ ॥ समकित ॥ १ ॥ हिंशामा धर्म बतावे | ताके मुख धूल हांसो ॥ मिया पाप बतायो मोटो । आडो न आसी काको || समकित ॥ २ ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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